Thursday, July 7, 2011

बाबा जयगुरूदेव जी की आवाज

महात्माओं ने खान-पान पर जोर दिया कि सात्विक भोजन सबके लिए जरूरी हे। लेकिन जो साधक हैं साधना में लगे हुए हैं उनके लिए तो बहुत ही जरूरी है। शाकाहारी होना जरूरी है, मेहनत और ईमानदारी की रोटी खाना जरूरी है क्योंकि रोटी का असर मन, बुद्धि, चित्त और साधना पर पड़ता है। इसलिए साधकों को ध्यान रखना चाहिए।
जिसने शाकाहार छोड़ दिया और निषेध वस्तुओं का सेवन किया तो न तो उनका मन सही काम करेगा न बुद्धि ठीक काम करेगी, न चित्त में सही चिन्तन होगा क्योंकि खान-पान का सू़क्ष्म से अति सूक्ष्म आवरण है। वह आवरण जब मन, बुद्धि, चित्त पर पड़ जाएगा तो ये सही काम नहीं कर सकेंगे।
अनाज में भी असर होता है। अगर अशुद्ध अनाज यानी चोरी के पैसे का अनाज सेवन कर लिया तो वह भी बड़ा नुकसपन करता है। जब तक उस अनाज का असर नहीं जाता जब तक मन, बुद्धि, चित्त नहीं संभल पाते हैं। इसीलिए महापुरूषों ने कहा है कि खाने से पहले गुरू को अर्पण कर दिया करो।
बाबा जयगुरूदेव जी की आवाज
संत उन्हीं को कहते हैं जो सुरतें अपने गुरू की कृपा लेकर साधना करते-करते सतलोक में पहुँचती हैं। यही संत समरथ पुरूष कहे जाते हैं। इन्हीं संत सतगुरू के द्वारा जीव भव-बन्धन से छुटकारा पा जाता है और इन्हीं के सतगुरू की कृपा से पार जाता है।
गुरूदेव उनको कहते हैं जिनकी सुरत सहस्रदल कवंल, त्रिकुटि, दसवां द्वार होती हुई सतलोक में पहुँचकर सतपुरूष से जाकर मिली और अपना रूप उनके रूप में मिला चुकी है। वह सच्चे गुरूदेव हैं। गुरूदेव ही सच्चे संत कहे जाते हैं।
परमसंत वह हैं जो सतलोक अनामी पुरूष्ज्ञ के हुकुम से इस मृत्युलोक मण्डल पर भेजे जाते हैं। मालिक खुद अपना हुस्न इन्हीं संत सतगुरू में छिपा कर आता है और जहां-तहां कभी-कभी प्रकट करता रहता है। मालिक का हुस्न वहीं पर प्रकट होता है जहां जीव अधिकारी बनाये जाते हैं। संत परिपूर्ण समरथ होते हैं। संत सतगुरू के लिए यहां कोई कानून नहीं होता, वह केवल दया करते हैं और अपने सच्चे परम पिता सतपुरूष के आधीन रहा करते हैं। मालिक अपनी सत्ता को रखने के लिए कभी इन्हीं परम संत सतगुरू में होकर अपना अदभुत जलवा दिखा दिया करते हैं। संत, परम संत में अन्तर कुछ भी नहीं है। उनमें समान ताकत काम करती है, दया एक ही है, समर्थता में एक है, गुणों में एक है, दोनों मालिक के निज रूप बोध स्वरूप होते हैं, दोनों एक तार दया करते हैं, जीवों को अपनी इच्छानुसार ले जा सकते हैं। दोनों मालिक के दरबार में हाजिरी देते हैं।